বৃহস্পতিবার, ৭ আগস্ট, ২০১৪

मरने दो 

दीप राग के  जल जाये,गीत हृदय मे पलने दो
तन जलकण से आलिंगन,हर क्षण बस यूं ही करने दो
मन प्रणय शिखर मे बस जाती,मधुर भाव सा बहने दो
विरह वासना प्रेम सदृश,नंगे पाँव ही चलने दो
जीवनतत्व मैंने तो समझ लिया,अब अभिमानों को मरने दो
 बरसों तक स्वयं मे कैद रहा,अब समर शौर्य से लड़ने दो
चिरपरिचित की फ़िक्र छोड़,स्वाधीन कलम सा चलने दो
निर्भय होकर जो है कहा नहीं,उसे खामोश ही रहने दो
स्वीकारी थी हार जहां,निर्भय विजय मे बदलने दो
जीवन पर जो है व्यंग्य प्रहार,उस व्यंग्य पर तो हँसने दो 
मर मर के जीवित रहा जो था,जी जी कर अब उसे मरने दो ....

















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